राजधानी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों से दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर खूब शोर हो रहा है।तीन फाड़ में बंटे निगम को एक करने की कवायद केंद्र में बैठी भाजपा सरकार द्वारा जारी है तो वहीं आप आदमी पार्टी एकीकरण से कहीं ज्यादा तुरंत चुनाव कराने को लेकर आतुर है।
बीते कई सालों से निगम में चल रहे फण्ड क्राइसिस की वजह से भाजपा शासित निगम की बिगड़ी छवि सुधारने की जद्दोजहद में भाजपा जुटी है। भाजपा नेताओं की माने तो तीन निगमों के अतिरिक्त्त खर्च के बोझ ने निगम की माली हालत खराब कर दी है। एकीकरण होने से ये खर्च कम होगा जिससे निगम की हालत सुधरेगी।
सवाल उठता है कि यूनिफिकेशन के नाम पर चुनाव की तारीख बढ़ाई तो जा रही है लेकिन इससे फायदा क्या मिलेगा? क्या केंद्र सरकार द्वारा डीएमसी एक्ट में कुछ ऐसा संशोधन होगा ताकि निगम को दिल्ली सरकार से नहीं डायरेक्ट केंद्र सरकार से फण्ड आये। यदि ऐसा नहीं होता है तो आर्थिक परेशानी तो आगे भी बरकरार रहने की पूरी आशंका है।
उधर मौजूदा समय की बात करें तो तीनों निगमों को मिलाकर लगभग 16000 करोड़ के कर्जे से पहले ही निगम दबा हुआ है।जिसमें से कुछ रकम दिल्ली सरकार द्वारा दिये लोन का है वहीं बाकी के रकम निगम में कार्यरत्त व सेवानिवृत्त कर्मचारियों से जुड़ा है, जैसे एरियर ,बोनस ,रिटायरमेंट बेनिफिट्स आदि। यदि एकीकरण के साथ साथ केंद्र इन दोनों ज़िम्मेदारियों को हाथोंहाथ निपटा देता है तभी एकीकरण का फायदा मिलेगा।